Saturday 30 November 2013

बालिग बनकर कब सोचेंगे



                  

तन से बालिग बन बैठे है
मन से अब तक ही छोटे है
बढ़ चढ़ कर अपराध किये है
धर्म के धंधे साथ लिए है
त्याग- तपस्या कुछ नहीं भाता
बनते स्वार्थी पीड़ा दाता
जाट –पांत का भेद बढ़ाते
पाप –पतन की राह पर चलते
ढृढ –संकल्प हुए अधूरे
वेद मंत्र पड़े है बिखरे
ईमान-आदत –चरित्र सिद्धान्त
ये सब है कहने की बात
नैतिकता कहाँ से लाये
हो चुका जो कबसे पराये
हिंसा- हत्या चोरी –लूट
दुर्बल मन की है करतूत
इंसानियत अपनाना होगा
प्रयास सबों को करना होगा
कुत्सित विचार को छोड़ना होगा
बालिग बनकर सोचना होगा 

   





Sunday 17 November 2013

वोटरों पर निर्भर है, प्रजातंत्र की डोर



 वोटरों पर निर्भर है
 प्रजातंत्र की डोर
राष्ट्र पर शासन करने की
हिम्मत हो पुरजोर
प्रजातंत्र का भविष्य है निर्भर
वोट उसे दें जो हो बेहतर  
अपने प्रतिनिधि को चुनकर
जाति भेद से ऊपर उठकर
प्रजा के हित का करे उपकार
चरित्रवान जो हो उदार
जिसमे न हो कोई विकार
उनको सौंपे ये अधिकार
देशभक्ति हो जिसमें पूरी
सेवावृति हो जिसकी धूरी
हर दृष्टि से जो खरे हो
ऊँच-नीच से जो परे हो
  लोकहित की बात करे जो
  प्रखर बुद्धि से सजग रहे जो
प्रगति की बाधा से दूर
देश पे जान लुटाये जरुर
  हो शिक्षित दूरदर्शी व्यक्ति
    सदाचारमय जिसकी वृति  
इमानदार हो निष्ठावान
सुयोग्य हो और नीतिवान
भ्रष्टाचार गरीबी तोड़े
जन से जन की नाता जोड़े
ऐसे व्यक्ति को जिताए
     जिसपे गर्व हमें हो आए    

Monday 4 November 2013

भाई –दूज


सूर्यदेव की पत्नी छाया
जिन्होंने यम –यमुना को जाया
इक-दूजे में प्यार अपार
खुशियों भरा उनका परिवार
यमराज को प्यारी बहना
सुन्दर सी सुकुमारी बहना
स्नेह से दोनों बढे –पले
अपने पथ पर आगे चले
कई बार करती निवेदन
घर आओ करने को भोजन
हूँ डरावना सूरत वाला
प्राण सबों का हरने वाला
स्नेह से कौन बुलाएगा
प्यार से कौन खिलायेगा
यही सोच घबराते यम
खुद को यूँ बहलाते यम
कार्तिक शुक्ल द्वितीया के दिन
यमुना के घर पर आये  यम
देख भाई को हर्षित हुई
ख़ुशी से यमुना चकित हुई
स्नेह अश्रु से भीगा तन मन
यम पूजन कर कराया भोजन
यमुना को वरदान मिला
अमर प्रेम का दान मिला
प्रति वर्ष इस दिन को आना
अपने बहन के घर खाना
भाई का आदर सत्कार
जो बहना करे हर बार
उसके घर वैभव रहे
अकाल मृत्यु का भय ना रहे
परंपरा बन ये दिन आया
भातृ –द्वितीया पर्व कहाया
यम द्वितीया या भाई-दूज
एक ही पर्व के है ये रूप
बहन कामना करती है
मंगलमय हो कहती है
भाई को लम्बी उम्र मिले
राह में हर दम फूल खिले.
‘’भातृ द्वितीया के दिन ही’’    
श्री चित्रगुप्त की पूजा भी
जो करते है लोग सदा
होते दूर भय व विपदा
समुद्र मंथन के समय
लक्ष्मी संग उत्पन्न हुए
पुरुषोतम श्री चित्रगुप्त
कर्म प्रधान श्री धर्मगुप्त
उन भगवान की पूजा होती
हाथ में जिनकी लेखनी होती
कर्मों का लिखते लेखा –जोखा
जाने –अनजाने का धोखा
दवात-लेखनी और पुस्तक
करते पूजा नवाते मस्तक
उनके वंशज कहलाते है
हरदिन शीश झुकातें है

लेखनी पटिटकाहस्तम श्री चित्रगुप्त नमाम्यहम .