Saturday 15 November 2014

काल के जाल


  काल के नेत्र लाल-लाल
ओष्ठ काले भयभीत कपाल
स्मित भयंकर वेश विकराल
मंथर गति  और क्रुर सी चाल
काल का प्रचंड वेग
है दुखद आवेग एक
अनगिनत आरम्भ अंत
राजा रंक और संत
साम्राज्य-राज्य का गठन
काल ने किया दमन
उदय और अवसान का
दिवस के गणमान का
ख्यातियां-उपलब्धियां
समस्त कामयाबियां
व्यक्तित्व-अभिव्यक्तियाँ
प्रचंड-कूटनीतियाँ
सौन्दर्य और सृष्टियाँ
रौंदकर-शक्तियाँ
काल बस उजाड़ता
तोड़ता-मरोड़ता
कर्ण महादानी सा
विदुर महाज्ञानी सा
अनगिनत महारथी
शूरवीर-सारथि
सबको-रौंदता हुआ
अठखेलियाँ करता हुआ
आगोश में खींचता है वो
पीड़ा से तड़पाता वो
वेदना से झुलसाता वो
क्रूरता दिखलाता वो
मृत्यु जाल फेककर
गाल में समाकर
कर देता अस्तित्व हीन.
                  

No comments:

Post a Comment