Friday 27 March 2015

राम अनंत कथा अनंता


   


गहन अनुभूति श्री राम कथा है
अतुलित उमंग की परम प्रथा है
वाल्मीकि का मानस लोक
वर्णित धर्म अर्थ और मोक्ष
महाकवि भवभूति का कहना
राम कथा है करुणा की महिमा
पाप नाश करके भगवान
कर देते हर व्यथा निदान
पद्द्माकर –मतिराम, कवि  ने
मोहक –रूप, अविराम छवि ने
                          राम रसायन,  करके पान
                           पा गए वो, दुर्लभ स्थान
                          भक्ति रस का, सागर है ये
                          गौरवमय श्रद्धा, आदर है ये
                          तुलसीजी थे जग विख्यात
                                                     वेद से कम नहीं उनकी बात
                          दोहे चौपाई और सब छंद
                         रामायण है अद्भुत ग्रन्थ         
                          मुसलमान थे संत रहीम
                         राम बिना थे प्राणहीन
                         राम आदर्श जो करे समाहित
                         मोक्ष प्राप्ति से रहे न वंचित
                          तीनों तापों से होगी मुक्ति
                           राम नाम है ऐसी शक्ति

Friday 20 March 2015

तुझे नमन करने को आते



तुझे नमन करने को आते
जग के सारे भक्त-प्रवर
मुझ जैसे मलीन जड़बुद्धि
रहते खड़े ठगे से अक्सर.
मैं दुविधा में रहती हमेशा
ज्योति किरण दिखाना माँ
घिरा है द्वन्द का ताना-बाना
मुझको राह दिखाना माँ .
दुनिया के तुम पीड़ा हरती
वेदना मेरी मिटाना माँ
पूजा का पलपल सुखमय हो
अपनी हाथ बढ़ाना माँ .
कैसे तुझसे करूँ प्रार्थना
क्या मांगू तुझसे वरदान
अंतर्यामी होकर फिर क्यों
माँ बनती  हो तुम अनजान.
मेरे बिगड़े काम बना दो
रोशन कर दो मेरा अंतर
     मेरी भक्ति बनी रहे माँ 
           दिव् चेतना दे दो भर-कर   

Saturday 7 March 2015

नीति से नीयत बनती है


नीति से नीयत बनती है
नीयत से बनती नियति
चिंतन के उस मन प्रांगन में
भाव बिना नहीं होती भक्ति.
हाथ छूड़ाकर जाना पड़ता
फिर भी रहते हैं अनजान
कोई ना अपना रहा हमेशा
निष्ठुर सा है ये अभिमान.
बहुत बुराई है दुनिया में
अच्छाई भी कम नहीं
हो सघन कितना ही अँधेरा
रोशनी रूक पाती नहीं.
हर्ष-शोक-अपमान-ग्लानि
दुःख-दैन्य न जीवन का आकर्षण
बोध-चेतना दबी सी रहती
मानव की आखों में उस क्षण.
धीरे-धीरे संशय से उठ
पाने लगी अपनी पहचान
जो भी बिखरा-उजड़ा क्षण था
आज हुआ इसका हमें ज्ञान.
अब तक कहाँ छिपा था ये बल
था साहस छिपा कहाँ
असहाय सा बनकर नाहक
पीड़ा पाते रहे यहाँ.
विचर रहे थे स्वप्न नीड़ में
तम ने भी था घेरा डाला
स्नेह-गीन तारों के दीपक
व्योम-विपिन में किया उजाला