Friday 20 November 2015

गांधारी की आँखों के तेज



राज घराने की वो दुलारी
थी सुन्दर सी राजकुमारी
रूपसी वो अथाह हुई थी
लेकिन अंधे से ब्याह हुई थी
अपने पति की ये लाचारी
भांप चुकी थी वो बेचारी
पति को देवता मान चुकी थी
उनका दुःख अपना चुकी थी
कहीं ये मन भटक ना जाये
उनसे कोई भूल न हो जाये
आखों पर पट्टी बांधी थी
गम उनको ना छू पायी थी
श्रेष्ठ हुए थे उनके विचार
अंधी बनना की थी स्वीकार
इस जग की मोहक छवि प्यारी
नहीं देखी कोई दृश्य मनोहारी
अहं भाव निज त्याग ना पाते
खुद सर्वस्व लुटा नहीं पाते
छिपा शेष कामना अंतर में
अनजान सी थी सायं-प्रातर में
घन-तम की चुनरी ओढ़ी थी
मायावी दुनिया से छिपी थी
धन्य हुआ था उनका जीवन
उपलब्धि थी उनका समर्पण
बंद आखों से की आराधना
सार्थक बनी उनकी प्रार्थना
तप की साधना बनी मिशाल
नेत्र की ज्योति बनी विकराल
इतनी तेज भरी नयनों में
भष्म हो जाये लोग क्षणों में
सामने आया था सुयोधन
वज्र समान बना उसका तन
विधि की लीला रची हुई थी
दुर्योधन को मौत मिली थी
गांधारी की आखों के तेज
कभी नहीं हुआ निस्तेज.     
        

Sunday 15 November 2015

छठ पर्व की उपासना



शुक्ल पक्ष की तिथि षष्ठी
कार्तिक का पवित्र महिना
साधना करते साधक गण
सविता की करके उपासना.
रोग-मुक्त हो पुत्र प्राप्त हो
दीर्घायु की अटल कामना
छठ की पूजा मन से करते
रखते अनंत भक्ति की भावना.
सूरज से वर्षा होती है
वर्षा से अन्न की उत्पन्न
अनगिनत प्राणियों का फिर  
पृथ्वी पर होता पोषण.
बांस के सूप मिट्टी के बर्तन
चावल गुड़ से बना प्रसाद
सुमधुर गीतों की ध्वनि से
छठ पूजा की मीठी सुवास.
रीति रिवाज के उन रंगों में
उपासना का है अपना ढंग
न विशेष धन की जरुरत
न पुरोहित शास्त्र का संग.
अर्ध्य दान और भावदान की
है इसकी कुछ खास महत्व  
अपने अपने सामर्थ्यों से
पूजा करते श्रद्धा-वत.
कामनापूर्ति छठ की पूजा
जो करते हैं सदा निरंतर
मनवांछित फल सहज ही पाते
सूर्य षष्ठी के शुभ अवसर पर.               

Tuesday 10 November 2015

चेतना का उद्घोष है दीपक



निज संस्कृति में बसी दीवाली
खुशियों की है प्रतीक दीवाली
सुन्दर सुखमय दीपों की अवली
रोशन करती घर और देहली
स्नेह के तेल में भीगती है बाती
दीपमालिका दिखती है अनूठी
निष्ठुरता को त्यागकर
आत्मज्योति को दीप्तकर
निर्जन रजनी को हरषाने
कोने-कोने का तिमिर मिटाने
जीवन पथ आलोकित करने
अंतर्मन को प्रकाशित करने
तिल-तिल कर हरपल जलता है
औरों को रोशन करता है
चेतना का उद्घोष है दीपक
संघर्षों का जोश है दीपक
जज्बातों की आश है दीपक
निराश मन की प्रकाश है दीपक.

HAPPY DIWALI     

Thursday 5 November 2015

सहसा वो विलीन हो जाते



दिन ढलने को हो आया था
घर अपने सब लौट आया था
थी गोधूली की अद्भुत वेला
हुआ प्रकाश का मंद उजाला
थे बरगद के पुराने-झाड़
पशु-पक्षी बैठे थे अपार
बोली मैना आनंदित होकर
आज बड़े प्यारे थे दिनकर
सूर्योदय था कितना मनोरम
जैसे दूर हुए थे सब गम
विस्मित हो बोला चमगादड़
कौन से सूर्य कैसे हैं दिनकर
उसे प्रकाश का भान नहीं था
दिन और रात का ज्ञान नहीं था
मैना बड़ी हैरान हुई
उसकी बुद्धि से परेशान हुई
विधि ने दिन और रात बनाई
उसे प्रकृति की बात बताई
दिन में हम करते हैं काम
रातों को करते हैं विश्राम  
चमगादड़ कुछ समझ न पाया
खुद को वो उलझन में पाया
साधू एक बैठे थे मौन
सुनकर उनका दृष्टिकोण
मैना को समाझाकर बोले
चमगादड़ ना देखे उजाले  
वो सदा अंधकार में जीता
प्रकाश से उसको रहा न नाता
उसने बस रातों को देखा
दिन क्या है कभी न समझा
वो नहीं जानता क्या है सृष्टि
जीवन की कैसी हो दृष्टि
कुछ मनुष्य ऐसे ही होते
संकुचित होकर जीवन जीते
ज्ञानप्रकाश से वंचित होते
बातों से आहत कर देते
पंथहीन राहों को चुनते
फिर सहसा विलीन हो जाते.